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कुछ काम की बातें - (सुविचार)

 सुविचार   -  ( १)आलस्य, क्रोध और अहंकार यह तीनों पतन के कारण हैं। मोह, माया और ईर्ष्या ये इन तीनों की बहने है।(२ )आलस्य, क्रोध, अहंकार तथा मोह, माया और ईर्ष्या से जो बच गया,वह सत्व गुणी, मोक्ष को प्राप्त कर, अमर हो गया। (३ )कमजोर की सहायता और दुष्ट का विरोध मानव का सर्वप्रथम धर्म है।(४)दुष्ट को सम्मान देना आत्महत्या के समान है।( ५ )राजा को राजनीति और प्रजा को नीति का सदा पालन करना चाहिए । (६ )जो सत्य है उसे निर्भीक होकर कहो।(७)सज्जन लोगों का साथ सदा, सुख शांति और सम्मान की राह दिखाता है।( ८ )जो संतुष्ट है वही धनवान है। (९ ) ताकतवर या धनवान वही है,जो दूसरे कमजोर की सहायता करें।( १० )ज्ञानी वही, जिससे समाज का भला हो।(११) संस्कार, धर्म और सत्य की राह दिखाते हैं।(१२)स्वतंत्रता की अधिकता,गुलामी में बदल जाती है।(१३ )जब तक आपके सामने कोई समस्या न आए, तो समझो हम कुछ नहीं कर रहे।(१४)पूजनीय तो सिर्फ परमात्मा ही है, उसे किसी भी रूप में पूजो, लेकिन अपने देव तुल्य पूर्वजों एवं माता-पिता को भी सदा सम्मान दो,स्मरण करो, नतमस्तक करो।

इनलुएंजा ए (H ३ एन २) की स्टीक चिकित्सा

 इनफ्लुएंजा   -(एच३ एन २) कारण  -  वायरस के कारण,ड्रॉपलेट इनफेक्शन होता है।लक्षण  - बुखार, सिर दर्द,सूखी खांसी, कमजोरी,नाक से पानी आना आदि। होम्योपैथिक  -    ऐकोन 30,जेल्सीमियम ३०. आयुर्वेदिक चिकित्सा  - त्रिभुवन कीर्ति रस,गिलोय घनवटी।एलोपैथिक चिकित्सा  -             levoसिट्राजिन और पेरासिटामोल। नाक में सरसों का तेल या सरसों के तेल में प्याज का रस मिलाकर,दोनो नथनो में दो-दो बूंद डालें या अणु तेल की 2 -२ ड्रॉप नाक में डालें।यह वायरस का रोग है, तीन-चार दिन में,स्वयं भी ठीक हो जाता है।अगर कोई उपद्रव होता है तो, फिर संक्रमण के आधार पर एंटीबायोटिक दी जाती है।

पंचकर्म

 पंचकर्म   -                                किसी भी रोग में चिकित्सा आरम्भ करने से पहले पंचकर्म के एक -दो या पांचो कर्म अवश्य करने चाहिए। लेकिन इनमें एक हफ्ते का अंतर अवश्य करें। ( 1 )वमन  -  उल्टी कराना -वात और कफ की शांति के लिए, स्नेहन और स्वेदन कराने के बाद, उल्टी कराएं,इससे आमाशय,श्वसन मार्ग ,ह्रदय आदि अंगों की शुद्धि होती है। इसके लिए मदन फल,नीम की पत्ती,नमक का गर्म पानी प्रयोग करते हैं।( २ )-  विरेचन - ( दस्त कराना) पित की शांति के लिए,दस्त कराने के लिए सनाय, त्रिफला,कास्टर तेल, मुनक्का  आदि का प्रयोग करें। (३ ) - शिरोविरेचन (नस्य) - नजला जुकाम,मिर्गी,गंध ज्ञान के नाश आदि मेंछोटी पीपली, जीरा, सेंधा नमक, काला नमक, प्याज का रस, अणु तेल आदि के २-३ बूंद दोनो नथनो में डाले। ४  - अनुवासन वस्ती- (पोषक एनिमा) डेक्सट्रोज,सामान्य लवण विलियन,दूध,सिद्ध तेल का प्रयोग, गुदा द्वारा किया जाता है। ५ - आस्थापन वस्ती (एनिमा) - आंत शोधन यानि मलाशय को स्वच्छ करने के लिए, लवण, अम्ल,त...