पंचकर्म

 पंचकर्म   -                                किसी भी रोग में चिकित्सा आरम्भ करने से पहले पंचकर्म के एक -दो या पांचो कर्म अवश्य करने चाहिए। लेकिन इनमें एक हफ्ते का अंतर अवश्य करें। ( 1 )वमन  -  उल्टी कराना -वात और कफ की शांति के लिए, स्नेहन और स्वेदन कराने के बाद, उल्टी कराएं,इससे आमाशय,श्वसन मार्ग ,ह्रदय आदि अंगों की शुद्धि होती है। इसके लिए मदन फल,नीम की पत्ती,नमक का गर्म पानी प्रयोग करते हैं।( २ )-  विरेचन - ( दस्त कराना) पित की शांति के लिए,दस्त कराने के लिए सनाय, त्रिफला,कास्टर तेल, मुनक्का  आदि का प्रयोग करें। (३ ) - शिरोविरेचन (नस्य) - नजला जुकाम,मिर्गी,गंध ज्ञान के नाश आदि मेंछोटी पीपली, जीरा, सेंधा नमक, काला नमक, प्याज का रस, अणु तेल आदि के २-३ बूंद दोनो नथनो में डाले। ४  - अनुवासन वस्ती- (पोषक एनिमा) डेक्सट्रोज,सामान्य लवण विलियन,दूध,सिद्ध तेल का प्रयोग, गुदा द्वारा किया जाता है। ५ - आस्थापन वस्ती (एनिमा) - आंत शोधन यानि मलाशय को स्वच्छ करने के लिए, लवण, अम्ल,त्रिफला,सॉफ, मधु या नींबू के पानी से शोधन करें। बड़ो को एक लीटर की मात्रा में,गुदा से दे।

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