मानव शरीर
मानव शरीर - अष्ट प्रकृति,16 विकार,और आत्मा।इन 25 तत्वों के संयोग को शरीर कहा गया।। सांख्यं शास्त्र।।अष्ट प्रकृति - (1-मूल प्रकृति, 2महान (बुद्धि तत्व ) ३ - अहंकार,4-शब्द तन्मात्रा,5-रूप तन्मात्रा, 6-रस तन्मात्रा, 7-गंध तन्मात्रा,८-स्पर्श तन्मात्रा)। सौलह विकार -[( पांच ज्ञानेंद्रियां (sensory nervous system) - (1-आंख , 2-नाक,3-कान, 4-जिव्हा और ५-त्वचा) पांच कर्मेंद्रियां - (1-हस्त,2-पाद, 3-गुदा 4 -लिंग और ५- वाणी)।पांच महाभूत - (1-पृथ्वी, 2 -जल, 3-वायु, ४-अग्नि और ५-आकाश )। मन (motor nervous system) - जो एक और अणु(सूक्ष्म) है।इन्द्रियों में ही ग्यारहवीं इंद्री, मन है। एक काल में अनेक कार्य नहीं होते अतः मन एक है।क्षण भर में इधर से उधर पहुंच जाता है। मन - गुण अवगुण,सुख दुख का ज्ञान कराता है।सत्व (विशुद्ध), रजः(राग ),तम(मोह) मन के स्वभाव है ।ज्ञान होना और ना होना मन का लक्षण है। इंद्रियों को अपने वश में रखना और अपने को भी नियमित रखना मन का कार्य है। इन्द्रियों द्वारा विषयों का स्वरूप मात्र ज्ञान होता है,गुण दोष का ज्ञान मन कराता है। इसके बाद अहंकार अपने अधिकार को व्यक्त करता है ।इसके बाद बुद्धि, उसे ग्रहण करना है या नहीं,यह निश्चय करती है। तब मनुष्य बुद्धि पूर्वक प्रत्येक कार्य करता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें