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युग किसे कहते है।

  - युग का अर्थ है देश काल और समय अनुसार प्राचीन काल से जीवन जीने की एक शैली जो कालांतर से बिना किसी विशेष बदलाव के चलती रहती है उस समय अवधि को युग कहते हैं ।प्राचीन युग जैसे पाषाण युग,काष्ट युग, ताम्र युग,लौह युग,हिम युगआदि।  सत युग -  इस युग में मानव की आयु 400 वर्ष तथा प्राण अस्थि में माना गया।इसी काल में वेद लिखे गए। सत्य और सत्य से अलग कुछ नहीं था।उस समय जो ज्ञान था वह आज तक नहीं हो पाया। सिर में ब्रह्मरंध्र ही ,तीसरीआंख थी,जिससे दूरदराज का ही नहीं,दुनिया की कोई चीज छुपी नहीं रह सकती थी।यहां तक कि पशु पक्षी की भाषा को भी वह अच्छी तरह समझ सकते थे। धड़ काटकर उसे जोड़ देना,गर्भस्थ शिशु के लिंग को बदलना(पुंसवन संस्कार),मानव का क्लोन, यहां तक कि आत्मा परमात्मा,सूक्ष्म शरीर के, सटीक प्रमाण देकर,उन्हें सिद्ध किया।  त्रेता युग  - सतयुग से 3000 साल बाद,जब सतयुग के विकास का विनाश होना शुरू हो गया तो,त्रेता युग का आरंभ हुआ।जिसमें आयु 300 साल और मानव प्राण मांस में आश्रित हो गया।श्री रामचंद्र जी इसी युग में पैदा हुए।अमेरिका ने शोध कर बता दिया कि रामसेतु ,उथले यानी तैरन...

आर्य व अनार्य

 आर्य व अनार्य   -          नवपाषाण युग(12000 साल से पहले ,50000 साल) में मानव सभ्यता का विकास आरंभ हुआ।जीविका का आधार, शिकार करना,गुफा में रहना,न खेती थी न रोटी। धीरे-धीरे समय बीतता गया और मानव ने अपनीभाषा मे बोलचाल सीखीऔर गेहूं जौ की खेती करनी शुरू की। कुत्ता व घोड़ा पालना शुरू कर खेती और रोटी बनानी सीखी। पहले शव को गाड़ा जाता था लेकिन अब जलाया भी जाने लगा, कब्र में शव  के साथ उसके हथियार ,वाहन,कपड़े व भोजन भी रखते थे। इन्हें ही आर्य कहा गया।जो इस विकास की राह पर नही चले,उन्हें अनार्य।

प्राचीन मानव

 प्राचीन मानव - आज से 120 करोड़ साल पहले अफ्रीका में परमात्मा के प्रभाव यानि प्रकाश यानि आत्मा से एक कोशकीय जीव, प्रोटोजोआ पैदा हुआ,जिसका देश काल और बुद्धि बल से क्रमिक विकास हो,अंततः अन्य जीवों से अलग श्रेष्ठ जीव मानव ने अपना अस्तित्व प्राप्त किया।      आज से 2600000 साल पहले  प्लेस्टोसिनकाल में, यह विकास को प्राप्त हो ,अंतिम 125000 साल पहले पृथ्वी के अन्य महाद्वीप में फैल गया।इस प्राचीन मानव को निएंडरथल कहा गया,निएंडरथल जर्मन में एक जगह का नाम है।वह काल पाषाण युग कहलाया।। डॉ डार्विन।।

सृष्टि यानि संसार की उतपत्ति

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 सृष्टि।  -       आज से 460 करोड़ साल पहले,सूर्य सेअलग हुई पृथ्वी का तापमान 1200℃ था।जिसके धीरे-धीरे ठंडी होने पर आज से 120 करोड़ साल पहले,अफ्रीका में,परमात्मा के प्रभाव यानि प्रकाश से,चौबीस तत्वों(अष्ट प्रकृति - 1 मूल प्रकृति,2 महान यानि बुद्धि, 3 अहंकार,4 शब्द तन्मात्रा,5 रूप तन्मात्रा,6रस तन्मात्रा,7 गन्ध तन्मात्रा,8 स्पर्श तन्मात्रा तथा सौलह विकार -  पंच ज्ञानेंद्रि 1आंख,2कान3नाक4जिव्हा 5 त्वचा ,पंच कर्मेन्द्री 1हाथ2पैर3गुदा4लिंग5वाक-वाणी तथा  मन और पंच महाभूत - पृथ्वी जल तेज वायु आकाश) के शरीर को बना,इसमें अपने प्रकाश रूपी आत्मा का संचार कर,25 तत्वों का मानव जीवन दिया।जो बारबार अपने कर्मोनुसार,मृत्यु उपरांत,सूक्ष्म शरीर के द्वारा,मानव योनि से पुनर्जन्म लेता रहता है।   (चरक संहिता) परमात्मा  -अनदिअव्यक्त,नित्य, ज्ञानी,एक और सर्वशक्तिमान है। आत्मा। - अनादि,अव्यक्त,नित्य,व्यापक और चेतना धातु से जानी जाती है। सर्वशक्तिमान , एक , अनादि , अव्यक्त ,हर जगह रहते हुए,अपनी शक्ति यानि अपने प्रभाव,आत्मा, द्वारा जीवन देने वाला है। दुनिया मे कोई दूस...

एक रोग- एक दवा

मूत्र रोग - शिलाजीत ,  प्रमेह - आमलीय हरिद्रा   वात कफ हर - हरड ,  वात नमैदोरोग - गुग्गुल ,  अतिसार -कुटज ,  अर्स - भिलावा ,  नेत्र व वात रोग - विफला ,  ग्रहणी - तक्र ,  अनिद्रा- दूध ,  आर्दीत - मक्खन ,  उदर रोग - ऊंटनी का दूध ,  नेहारोग - अन्जन ,  वृद्धावस्था - दूध ,   अग्निमान्ध सिरका - अदरख ,  थकान - स्नान और सुरा ,  दृढशरीर - व्यपाम् ,  मूत्रक्रच - गोक्षुर   कास _ कन्ठकारी ,  व्यस्थापन - ऑवला,  तृषा - गर्म मिट्टी के ढेले से बुझाया जल   विष- शिरिष  ज्वर - पितपापडा व नागरमोथा,  वमन - धान का लावा ।